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An Unsent Apology by Shaik Jilani

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Fitting into Life by Hasina Saiyeda

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Description

“समरजीत सिंह द्वारा रचित “”रणथंबौर की ज्वाला”” एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो राजपूत वीरता, शिवभक्ति और सनातन धर्म की रक्षा की अमर गाथा को जीवंत करता है। यह कथा 11वीं शताब्दी के रणथंबौर किले पर केंद्रित है, जहां गौर राजपूत राजा चंद्रसेन गौर, उनके पुत्र इंद्रसेन और वफादार रेवत सिंह राठौड़ ने महमूद गजनवी के भतीजे सलार मकसूद की क्रूर सेना का सामना किया। सलार का लक्ष्य था 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग को ध्वस्त करना, जो सवाई माधोपुर के शीवर गांव में स्थित है।

उपन्यास की शुरुआत गौर राजपूतों की वंशावली से होती है, जो बंगाल के पाल राजवंश से जुड़ती है। लेखक ने पालों के उदय-पतन, सेन वंश के आक्रमणों और राजस्थान प्रवास को विस्तार से चित्रित किया है। रणथंबौर की भौगोलिक सुंदरता—अरावली की चोटियां, चंबल-भामती नदियां और घने जंगल—योद्धाओं के शौर्य का काव्यात्मक वर्णन करती हैं। कथा में चमत्कारिक घटनाएं उभरती हैं: पुजारियों द्वारा शिवलिंग को एक फुट मिट्टी में दफन कर बचाना, रेवत सिंह का सिरविहीन धड़ से युद्ध लड़ना, और पुजारी हरि शर्मा का त्रिशूल उठाकर लड़ना।

यह केवल युद्ध-कथा नहीं, बल्कि भक्ति और बलिदान की मिसाल है। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की पुराणिक कथा—घुश्मा की निष्ठा और शिव की कृपा—आधुनिक संदर्भों से जुड़ती है, जहां लेखक स्वयं को चंद्रसेन का वंशज बताते हुए पर्यावरण व सांस्कृतिक संरक्षण का संदेश देते हैं। उपसंहार में “”धर्मो रक्षति रक्षितः”” का उद्घोष पाठकों को संकल्प बंधन करता है।

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