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An Interview with Tara Singh

Book: Kumudini (कुमुदिनी: कहानी-संग्रह)

Genre: Poetry

Biographical Info: Dr. Tara Singh, renowned Litterateur and story-writer. No. of books published – 41. (i) Poetry Books – 20 (ii) Gazal Books – 7 (iii) Story book −9 iv) Novel −2 v) Essay Books – 2 Also her 115 joint-poetry collections are already published. Her articles are published on 29 popular Hindi websites including swargvibha and one song was selected as title song of a Hindi movie ‘SIPAIJI’ released in 2008. Her 8 Audio Books (Novel -2, Story Books -3, Poetry Books -3) are being broadcast continuously by Kuku FM and are drawing excellent response from listeners and literary lovers. Read more on Wikipedia

एक छोटी-सी बातचीत संकलनकर्ता डॉ. तारा सिंह के साथ

1. इस इंटरव्यू का पहला सवाल – आपके लिए साहित्य की परिभाषा ?

डॉ. तारा सिंह: साहित्य समाज का प्रतिनिधि है, और कवि या साहित्यकार, साहित्य का निर्माता है| अत: उनके कंधे पर महान उत्तरदायित्व है| साहित्यकार का उद्देश्य होना चाहिये कि वह साहित्य को मानव के उत्कर्ष के लिये बनाए, जो पाठक की भावनाओं को तरंगित कर उसे सत्य,शिव, सुन्दर का पुजारी बना सके| किसी भी समाज के साहित्य में, उस समाज का उत्थान-पतन देखा जा सकता है; अर्थात् समाज में जब जैसी परिस्थितियाँ विद्यमान होती हैं, उस समय के साहित्य में वैसी ही भावनाएँ और विचारधाराएँ अंकित हुआ करती हैं|

2. आपके जीवन में किन तीन लोगों ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है?

डॉ. तारा सिंह: (i) आदि शक्ति माँ काली, जिनके चरणों के नीचे मेरी तपोभूमि है, जहाँ बैठकर मैं साहित्य साधना करती हूँ | (ii) मेरे पति, प्रो. बी. पी. सिंह (iii) मेरा छोटा बेटा, राजीव सिंह, एक्स्ट्रा चीफ मेरिन इंजीनियर; मुझे यहाँ तक पहुंचाने में इन तीनों का बहुत, साथ मिला |

3. पसंदीदा साहित्य विधा ?

डॉ. तारा सिंह: कहानी और उपन्यास| उपन्यास एक विशाल उद्यान है, जिसमें अनेक पेड़-पौधे होते हैं; तो कहानी एक एकहरी बेल है| कहने का मतलब, उपन्यास में समाज के वैविध्य का चित्रण रहता है, जब कि कहानी में किसी एक व्यक्ति का विशेष चित्रण रहता है| उपन्यास में व्यक्ति या व्यक्तियों के जीवन की अनेक घटनाओं का संग्रह होता है, पर कहानी किसी एक घटना पर आधारित होती है| अर्थात् हम कह सकते हैं, कहानी, उपन्यास की तरह रमणीय नहीं है, जहाँ भाँति-भाँति के फूलों के रसों का समिश्रण हो, बल्कि यह एक गमला है| जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है| इसलिये मुझे कहानी और उपन्यास, दोनों अत्यधिक पसंद हैं|

4. प्रकाशित रचनाएँ ?

डॉ. तारा सिंह: 43 (कविता-संग्रह-20, ग़ज़ल-संग्रह-7,कहानी-संग्रह-11,उपन्यास-3,निबन्ध-2)

5. अगर कोई बिलकुल अनजान आदमी कहे कि उसे आपकी अमुक पुस्तक/कहानी/कविता बहुत पसंद आई तो आपको कैसा लगा ?

डॉ. तारा सिंह: इसे मैं अपने परिश्रम का, पारितोषिक समझूँगी| आजकल कितने लोग हैं जो, दूसरे के काम को सराहने के लिये तैयार हैं?

6. क्या आपको लगता है कि कोई लेखक हो सकता है अगर वे भावनाओं को दृढ़ता से महसूस नहीं करते हैं ?

डॉ. तारा सिंह: कोई भी रचना, एक साहित्यकार के हृदय और मस्तिष्क से उत्पन्न होती है| उसके प्राण, उसका जीवन, उसका सर्वस्व, जिसके कारण उसकी महत्ता है, उनमें सर्वत्र पाया जाता है| प्रत्येक रचना, साहित्यकार के मनोभावों की सच्ची अकृत्रिम-अभिव्यक्ति होती है| यही कारण है कि रचयिता की प्रतिभा की झलक उसकी रचना में सर्वत्र दिखाई देती है| जब तक भाषा पर पूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं हो जाता, कोई भी रचनाकार, अपनी रचनाओं द्वारा पाठक के मन को तरंगित नहीं कर सकता| इसके साथ ही, कम से कम शब्दों में, अपनी बात को चोटीले तरह से कहने का हुनर, अर्थात् साहित्यकार को गागर में सागर भरने का इल्म आना चाहिये, तभी वह साहित्यकार कहला सकता है|

7. कोई सलाह जो आप आकांक्षी लेखकों को देना चाहते हैं?

डॉ. तारा सिंह: आप जो भी लिखें, कविता, कहानी, उपन्यास, ग़ज़ल; एक बात का ख्याल रखें, कि वह हमारे समाज को आगे ले जाये, पीछे की ओर नहीं| विघटनकारी रचनाएँ, समाज में जहर घोलने का काम करती हैं| इससे हमारा मानव-समाज कमजोर पड़ जाता है, जब कि रचनाओं को समाज की कड़ी को जोड़ने का काम करना चाहिए|

8. पुस्तक के संबंध में पाठकों के लिये कोई संदेश ?

डॉ. तारा सिंह: पाठक को जज बनना चाहिये, आलोचक नहीं| उन्हें अधिकार है, कि अपना मंतव्य, हाँ और ना में दें| पर हर बार ‘हाँ’, या हर बार ‘ना’ नहीं होना चाहिये, क्योंकि इसमें सिर्फ अपनी आत्मतुष्टि के लिये रचनाओं को लेकर नुक्ताचीनी करना, रचनाकार के प्रति निरादर का भाव झलकता है|

अपना समय देने के लिए धन्यवाद !

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