Book: Pravah
Genre: Poetry
Biographical Info: स्तुति श्रीवास्तव, हमीरपुर, उत्तरप्रदेश से 18 वर्षीय युवा लेखिका हैं जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक कॉलेज में बी.ए. तृतीय वर्ष में अध्यनरत हैं | ये अपने लेखन के माध्यम से युवाओं को नई दिशा देना चाहती हैं, इनका मानना है की “साहित्य की आवाज़ भीड़ की चीख से हज़ार गुना ऊँची होती है |” यह अधिकतर सामाजिक संवेदनाओं, प्रकृति एवं देश सेवा से परिपूर्ण विषयों में लेखन करती हैं |
यह हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में सक्रिय लेखिका हैं, इनकी रचनाएं विभिन्न पुस्तकों एवं समाचार-पत्रों, कई प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं | इनकी कई कविताएं, जैसे- लिबास, दुनिया कमाल है, आदी कविताएं यूट्यूब में Poetry and You के पेज पर पायी जा सकती हैं | इसके साथ-साथ ये अपनें जिले हमीरपुर के प्रथम साहित्यिक मंच “हमीरपुर साहित्य संगम” की संस्थापक भी हैं, इनकी इस संस्था का एकमात्र उद्देश्य लोगों में साहित्य का प्रसार करना एवं नई प्रतिभाओं को एक निःशुल्क मंच प्रदान करना है | लेखन के साथ यह समाज सेवा के लिए सदैव तत्पर रहती हैं इन्होंने कई सामाजिक पहलों में बढ़ चढ़कर प्रतिभाग किया है |
एक छोटी-सी बातचीत संकलनकर्ता स्तुति श्रीवास्तव के साथ
1. इस इंटरव्यू का पहला सवाल – कृपया मुझे कविता के बारे में बताइए? कविता के बारे में आपकी क्या धारणा है?
स्तुति श्रीवास्तव: कविता को यदि मैं शब्दों में व्यक्त कर पाऊं तो यह मेरी एक उपलब्धि होगी | मेरे अनुसार कविता वह माध्यम है जिसमें आप कम शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट रूप से सबके सामने रख सकते हैं | कविता का अर्थ सिर्फ लययुक्त होना जिससे वह सभी के कानों में मधुर लग सके या व्यक्ति की वेदनाओं को व्यक्त करने का माध्यम नहीं है अपितु यह समाज में परिवर्तन लाने का एक शक्तिशाली अस्त्र है जिसका प्रयोग अपनी चतुराई से अच्छे कार्यों के लिए किया जा सकता है |
2. आपने कविता लिखना कब शुरू किया? क्या आपको पहली बार याद है कि आपने कुछ लिखा था? आपकी प्रेरणा का स्रोत पहले क्या था? क्या यह समय के साथ बदल गया है?
स्तुति श्रीवास्तव: मैंने कविता लेखन 2 दिसंबर 2018 से किया, हालाँकि बचपन से कहानी लेखन का शौक था लगभग 10 वर्ष की आयु से लेखन प्रारम्भ किया था और उस वक़्त बाल मन होने के नाते जो अपने स्कूल में सुनती थी और पढ़ती थी उनके ऊपर ही लिखती थी, उस वक़्त मेरा उद्देश्य था की सब मुझे और मेरी रचनाओं को अख़बार में पढ़े, लेकिन कम ज्ञान के चलते प्रकाशित नहीं हुई और बहुत निराश होकर लेखन बंद कर दिया परंतु डायरी लेखन पसंद था जो कभी नहीं बंद किया जिसमें प्रतिदिन के अनुभवों को लिखा करती थी | स्कूल के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) आ गई और नये शहर, नये अनुभवों से ऐसी प्रेरणा मिली की कविता लेखन प्रारंभ कर दिया और वर्ष 2019 के मई में अपनी पहली कविता “प्रकृति माँ” लिखी और उसे एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए भेजा जिसमें उसका प्रथम स्थान आया एवं वहाँ से एक पत्रिका में प्रकशित हुई और इस तरह से आज यहाँ तक का सफर कर पायी |
3. प्रवाह अनेक विचारों का एक संकलन है, इस संकलन का मकसद क्या है?
स्तुति श्रीवास्तव: प्रवाह का शाब्दिक अर्थ है- बहाव या निरंतर आगे बढ़ना | उसी तरह से यह पुस्तक भी है प्रवाह उन विचारों का जो वर्तमान में प्रासंगिक हैं | इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य हमीरपुर जिले (उत्तरप्रदेश) की प्रतिभाओं को निःशुल्क प्रकाशित कर उन्हें प्रकाशित लेखक बनाकर उनके विचारों को इस पुस्तक के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर का एक मंच प्रदान किया जा सके | इसी के साथ संकलनकर्ता के तौर पर यह मेरे जीवन की प्रथम पुस्तक है |
4. आपके पसंदीदा कवि / लेखक कौन हैं? एक किताब का नाम दें जो आपको सबसे ज्यादा पसंद है, जो आपने पढ़ी है।
स्तुति श्रीवास्तव: सबसे पसंदीदा की बात कहूँ तो वह होंगे रबीन्द्रनाथ टैगोर जी हैं, उनकी कविताएं एवं उपन्यास हमेशा ही मुझे नया दृष्टिकोण देते हैं, उनके द्वारा लिखित उपन्यास “गोरा” मेरा सर्वाधिक प्रिय है एवं उनके द्वारा लिखित 12 उपन्यासों में सबसे बड़ा है | इस पुस्तक को जितना पढ़ा उतनी बार कम लगा है, हर बार कुछ ऐसे प्रश्न मिल जाते हैं जो मुझे झकझोर देते हैं | जब मैं अपनी प्रथम कविता लिख रही थी उस वक़्त इसी उपन्यास को पढ़ रही थी, इस पुस्तक का मेरी प्रथम कविता में एक विशेष योगदान रहा या कहा जाये तो इस पुस्तक ने मेरा जीवन बदल दिया |
5. आपके जीवन में किन तीन लोगों ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है?
स्तुति श्रीवास्तव: हालाँकि यह कटु सत्य है की मैं अपने जीवन में मिले व्यक्तियों से बहुत कम ही प्रभावित होती हूँ | यदि एक विशिष्ट व्यक्ति की बात की जाये तो मैं अपने पिता जी से अत्यधिक प्रेरित हूँ, इसका कारण है की मैं व्यक्ति से ज़्यादा उसकी तीन चीज़ों से प्रभावित होती हूँ और वह तीन हैं- “स्वनिर्मित विचार, कर्मठता, मानवता”| मेरे पिता जी एक किसान हैं उनकी आय तो ज़्यादा नहीं है पर उनका अपने विचारों और कार्यों के प्रति कर्मठता ने ही मेरे विचारों को यह आकार दिया है | उनकी समझाई प्रत्येक बात बहुमूल्य है परंतु इन तीन बातों से मैं अत्यधिक प्रेरित हूँ जिसका कारण है की आज मैं इन मानवीय मूल्यों को समझने में सक्षम हूँ और समाज के लिए थोड़ा बहुत कार्य कर पा रही हूँ | इसके अलावा महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद जी के विचारों का गहरा प्रभाव महसूस करती हूँ |
6. क्या आपको लगता है कि कोई लेखक हो सकता है अगर वे भावनाओं को दृढ़ता से महसूस नहीं करते हैं?
स्तुति श्रीवास्तव: जी बिलकुल | यह ज़रूरी नहीं की प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं से परिचित हो, और कभी-कभी कुछ भावनाएं क्षणिक होती हैं तो यह कहा जा सकता है की भावनाओं को दृढ़ता से न महसूस करने के बावजूद भी व्यक्ति लेखन सफलता पूर्वक कर सकता है | हालाँकि मेरा अनुभव यह कहता है की जब विचार स्वयं के होते हैं ना की किसी के सुने और समझाये हुए तो निश्चित ही व्यक्ति भावनाओं को दृढ़ता से महसूस कर सकता है और यह विचार तब आते हैं जब आप अपने आस-पास घटित चीज़ों में ध्यान केंद्रित करते हैं और उन्हीं में प्रेरणा की तलाश करते हैं एवं इस कार्य के लिए एक लेखक के मस्तिष्क से विचार करना अनिवार्य है |
7. कोई सलाह जो आप आकांक्षी लेखकों को देना चाहती हैं?
स्तुति श्रीवास्तव: धन्यवाद इस प्रश्न के लिए | जैसा की मैं वर्तमान में देखती हूँ की लेखन तो प्रत्येक व्यक्ति करता है, किसी की विधा अलग है तो कोई डायरी वाला लेखन पसंद करता है या कोई प्रकाशित होने के लिए तत्पर रहता है, पर लेखन अवश्य करता है, यह वास्तव में अच्छा है, परंतु प्रत्येक अच्छाई के साथ कुछ बुराई या अवगुण अवश्य छुपा होता है उसी तरह आकांक्षी लेखकों की दुर्बलता यह समझ आती है की वह सदैव उन विषयों पर लिखने के लिए उत्साहित होते हैं जो पाठक पढ़ना चाहते ना की वह विषय जो एक अच्छे समाज की परिकल्पना करने में सहायता करेंगे | इसलिए सलाह इतनी ही देना चाहूँगी की आप लेखक वर्ग में आते हैं इस बात पर गर्व करें एवं एक लेखक होने की ज़िम्मेदारी का अनुभव ज़रूर करें एवं इस लेखन के मंच का प्रयोग समाज को सही दिशा देने के लिए भी करें ना की सिर्फ अपने जीवन की दशा परिवर्तन के लिए |
8. पुस्तक के संबंध में पाठकों के लिए कोई संदेश?
स्तुति श्रीवास्तव: संदेश तो नहीं पर सभी पाठकों से एक विनती करना चाहूँगी की जैसा आप सभी को ज्ञात हो गया होगा की यह पुस्तक सिर्फ मेरी नहीं या मेरे स्वयं के स्वप्न नहीं है यह पुस्तक है उन प्रतिभाओं की जिन्हें छोटे जिले या ग्रामीण क्षेत्र से होने के कारण एक सही अवसर व मंच नहीं मिल पाता है, जिस तरह बचपन में मुझे निराशा का सामना करना पड़ा तो मैं दूसरों के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहती| इसीलिए यह मेरा एक विनम्र निवेदन है की इस पुस्तक को अपना अपार सहयोग दें जिससे इस पुस्तक में प्रकाशित 32 नये रचनाकारों का मनोबल बढ़ाया जा सके एवं वे भी हमारी और आपकी तरह साहित्य को समझें एवं प्रसार कर सकें |
अपना समय देने के लिए धन्यवाद !
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