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An Interview with Piyush Goel

पीयूष जी आप अपने बारे में बतायें। : जी मेरा नाम पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला) हैं, मैं माता रवि कांता गोयल व पिता डॉ देवेंद्र कुमार गोयल के यहाँ 10 फरवरी 1967 को दादरी में पैदा हुआ था। मैं एक यांत्रिक इंजीनियर हूँ, करीब 25 साल का विभिन्न कम्पनियो में काम करने का अनुभव हैं। बचपन से ही कुछ नया करने की लगन ने कार्टूनिस्ट,लेखक व मोटीवेटर बना दिया क्रिकेट अंपायरिंग का भी शौक रखता हूँ, दर्पण छवि का लेखक हूँ।

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1. आप संग्रह करने के भी शौकीन हैं।

पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला): जी मैं सन 1982 से संग्रह कर रहा हूँ सबसे पहले मैने डाक टिकटे सँग्रह करना शुरू किया धीरे धीरे और अन्य चीजों का सँग्रह करना शुरू कर दिया माचिस सँग्रह सिगरेट सँग्रह डाक टिकट सँग्रह आटोग्राफ सँग्रह पेन सँग्रह प्रथम दिवस सँग्रह सिक्के व नोट सँग्रह मेरे पास हैं इसके अलावा गणित मेरा प्रिय विषय हैं मेरे 3 पेपर इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं।

2. आप दर्पण छवि के लेखक है आप कौन-कौन सी पुस्तकें लिख चुकें हैं।

पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला): जी मैं अब तक 16 पुस्तकें दर्पण छवि में लिख चूका हूँ श्रीमद्भगवद्गीता हिंदी व इंग्लिश भाषा में, मेहंदी कौण से गीतांजलि, कार्बन पेपर से पंचतंत्र, कील से पीयूषवाणी व सुई से मधुशाला को लिखा हैं सुई से लिखी पुस्तक दुनियाँ की पहली पुस्तक जो सुई से लिखी गई हैं।

3. आपकी कौन-कौन सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला): जी मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं पहली पुस्तक “गणित एक अध्धयन” दूसरी पुस्तक “इजी स्पेलिंग” तीसरी पुस्तक “पीयूषवाणी” अभी हाल ही में चौथी पुस्तक “सोचना तो पड़ेगा ही”।

4. आपकी चौथी पुस्तक “सोचना तो पड़ेगा ही”के बारे में बतायें।

पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला): जी मेरी चौथी पुस्तक “सोचना तो पड़ेगा ही” मेरे अपने 110 विचारों का सँग्रह हैं जो पुस्तक के रूप में आपके सामने हैं मेरा सोचना ये हैं की मेरे अच्छें विचारो से किसी की जिंदगी में सकरात्मकता ही आ जाये समझूंगा मेरा प्रयास सफल रहा। मैं अपने प्रिय पाठको से कहना चाहूंगा एक बार अवश्य पढ़े। ऑनलाइन उपलब्ध हैं अंत में यह अवश्य कहना चाहूंगा “जिंदगी को जीना हैं सोचना तो पड़ेगा ही और जीनें तो चढ़ने पड़ेंगे”।

5. आपकी पुस्तक का नाम “सोचना तो पड़ेगा ही” वाकई बड़ा टचिंग हैं।

पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला): जी आपको बताऊँ पुस्तक का नाम रखने में मुझे 10-15 दिन लगे सब कुछ तैयार था नाम की वजह से मुझे अपने कई दोस्तों से बात की उनके बतायें नामों को लिखता रहा अपने आप भी सोचता रहा एक दिन रात को करीब 2 बजे एक नाम दिमाग मैं आया और नोट कर लिया अगले दिन सुबह पब्लिशर को ये ही नाम दे दिया….अब जो भी कोई मुझ से मिलता हैं या फ़ोन पर बात करता हैं सबसे पहले ये ही बोलता हैं भाई “सोचना तो पड़ेगा ही….”।

6. पुस्तक “सोचना तो पड़ेगा ही” के कुछ विचार।

पीयूष कुमार गोयल (दादरीवाला):

  • जिंदगी को अगर किसी का सहारा लेकर जिओगे एक दिन हारा हुआ महसूस करोगे।
  • किसी काम को करने की नियत होनी चाहिये टालने से काम नहीं चलने वाला।
  • आपके सपनों में बहुत के सपने छिपे हैं अपने सपनें पुरे करो।
  • सोचना मेरी आदत…लगन मेरा समर्पण… जिद्द मेरी सफलता।
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